Tuesday 11 August 2015

गंतांत्रिक मूल्यों का विघटन बनाम संसद में गतिरोध

संसद में जो गतिरोध आज तीन सप्ताह से चल रहा है। पक्ष और विपक्ष एक दूसरे के प्रति नफरत, क्रोध और नीचा दिखाने के तेवर भारतीय गणतंत्र के इतिहास में बेजोड़ है। देश की जनता सब कुछ देख कर क्षुब्ध और आश्चर्य से आत्मग्लानि प्रच्छन्न भाव से प्रकट कर रही है कि इन्हें ही संसद में जाने के लिए हमने वोट दिए। इनका नंगा नाच देश ही नहीं विश्व भी देख रहा है।
क्या हम मनुष्य के प्रति मनुष्यत्व की भारतीय परंपरा भूल गए। बुद्ध और गांधी के आदर्शों को नजरअंदाज कर स्वेच्छाचारिता और उद्दंडता का ताना बाना बुनने के लिए एकाधिकारिक रूप से स्वतंत्र हैं और जन-कल्याण की भावनाओं को दरकिनार कर विकास की धारा को उल्टी दिशा में प्रवाहित करने के लिए आतुर-व्याकुल हो रहे हैं। क्या यही 21वीं शताब्दी का गणतांत्रिक देश-प्रेम है?

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