जन चिन्तन
आदमी के भीतर कभी न शान्त होनेवाली भूख होती है। भूख-रोटी के लिए, भूख-प्रेम के लिए, भूख-धन, संपत्ति ऐश्वर्य के लिए, भूख-महत्त्वाकांक्षा के लिए, भूख-सम्मान, प्रतिष्ठा प्रभुता के लिए, भूख-ईश्वर प्राप्ति, मोक्ष के लिए। भूख मिटने, मिटाने का कोई स्थायी उपाय, विधि विधान, मंत्र-तंत्र, ज्ञान नहीं। जब से पृथ्वी अपने अस्तित्त्व में आई ईश्वर ने मानव, दानव, चर-अचर के पेट में भूख भी दे दिया। जिसके लिए आदमी, जानवर, पशु-पक्षी तैंतीस कोटि जीव अपनी भूख शांति के लिए तरह तरह के उपाय करते रहे हैं। प्रतिदिन पेट की आग में हजारों हजार मन अन्न, जल, फल, फूल, सब्जिया, भक्षाभक्ष- मांश, मदिरा खप जाते हैं। फिर भी भूख, अभाव से जीवों की इच्छाओं को शान्त नहीं किया जा सकता। भूख, अभाव, दरिद्रता दूर करने के लिए सरकारें बनती हैं। योजनाएं बनती हैं। असंख्य कार्यक्रम चलते हैं परन्तु भूख पर नियंत्रण रखने में विश्व भर की सरकारें असफल हो जाती हैं। उन्नत, अर्थउन्नत, देशों में भी असंख्य लोग भूख से छुटकारा नहीं पाते। अरबों, खरबों, क्विंटल अनाज, फल, सब्जियां भी धरतीजनों की भूख को मिटा नहीं पाती। सनातन काल से साधु, सन्यासी, योगी, महात्मा भी भूख की मार को झेलते हैं। चाहे कर्म योगी हों अथवा ज्ञानयोगी। भूख की ज्वाला से बच नहीं पाते। ज्ञान ध्यान भूख की चपेट में आकर निष्क्रिय हो जाता है। पुराणों में वर्णित है कि महामुनि नारद ने भूख की ज्वाला से ज्ञाहि त्राहि करते हुए कुत्ते का मांश तक खाया है। मोक्ष प्राप्ति के लिए जिन्होंने घर-बार कुटुम्ब परिवार छोड़ा और तपोवनों की ओर प्रस्थान किए, अपने साथ कुछ न कुछ खाने के लिए रख लिया। तपो वनों में तपस्यारत साधु, सन्यासी, योगी भूख लगने पर कन्द मूल, फल, से भूख की ज्वाला को शान्त करते रहे। हिरण तथा अन्य पशुओं का शिकार कर भूख मिटाते रहे। मनुष्य घर-परिवार, सांसारिकता त्यागकर तो रह सकता है परन्तु भूख से मुक्ति पाना कठिन होता है। भूख से हजारों लाखों लोग मर गए या आत्महत्याएं कर ली। भूख की आग सहन न होने के कारण प्रेम, अप्रेम में बदल जाता है। घर-सम्बन्ध टूट जाते हैं। पेट के लिए चोरी, डकैती, हत्याएं करता है। तरह तरह के जघन्य पाप कर्म करता है और यातनाएं सहता है।
ईश्वर ने इन्सान, जानवरों, चिड़ियों, वन्य जीवों, जल जीवों को बनाते समय यही सोचा होगा कि भूख ही मनुष्यों तथा अन्य जीवों को कुछ न कुछ अच्छा या बुरा करने के लिए प्रेरित करेगी। भूख ही दुनिया के परिवर्तन का मुख्य कारण बनेगी। भूख ही सत्-असत् अस्तित्त्व-अनस्तित्त्व धर्म का मूल कारण भी बनेगी। मोक्ष के लिए भूख पर नियंत्रण पाने का अर्थ है मृत्यु को गले लगाना। अपने अस्तित्त्व को समाप्त करना। क्योंकि भूख में ही जीवन के सारे अर्थ छिपे होते है। पेट की भूख और प्रेम की भूख सभी जीवों के अस्तित्त्व के दो सार्थक तथ्य है। इन दोनों के कारण ही सृष्टि का उद्भव, विकास और संहार का मर्म है। भूख से छुटकारा पाने की सार्थक कोशिश ही मनुष्य का कर्म और धर्म है।
-स्वदेश भारती
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